अपशिष्ट पदार्थ को दिया नया रूप
- Nov 7 2013 12:20PM
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दिन-प्रतिदिन पर्यावरण को होनेवाले नुकसान के चलते, ऐसी हर चीज के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए जागरूकता फैलायी जा रही है, जिसका प्रयोग पर्यावरण के लिए नुकसानदेय साबित होता है. इकोफ्रेंडली लाइफस्टाइल को अपनाने में यकीन रखनेवाली महिमा मेहरा, एक ऐसी ही उद्यमी हैं, जिन्होंने हाथी छाप का निर्माण कर कागज बनाने का नया तरीका ढूंढ़ निकाला..
महिमा बीते लगभग एक दशक से कागज बनाने के उद्योग से जुड़ी हैं, लेकिन ये कागज पेड़ों को काट कर नहीं, बल्कि हाथी के गोबर से बनाया जाता है. आइए जानते हैं, नयी सोच के साथ अपनी अलग पहचान बनानेवाली महिमा के इस सफर के बारे में..कैसे आया यह आइडिया
शुरू से ही मैं कागज की री-साइक्लिंग से जुड़े काम करती रही हूं. जब मुझे पता चला कि हाथी के गोबर से कागज का निर्माण किया जा सकता है, तो मैं बेहद उत्साहित हुई. मेरा उत्साह तब और भी बढ़ गया, जब मुझे यह पता चला कि इस कागज को री-साइकिल भी किया जा सकता है. इसके बाद मैंने अपनी टीम के साथ इस काम को समझने के लिए जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इस दौरान हमें पता चला कि हाथी का पाचन तंत्र रेशों को बहुत अच्छी तरह नहीं पचा पाता. इस तरह से उसकी लीद में कागज बनाने के लिए जरूरी पल्प तैयार करने की खासी गुंजाइश होती है. हाथी ऐसा जानवर है, जो अपने खाये हुए का 40 फीसदी हिस्सा ही पचा पाता है. उसी की लीद को री-साइकिल कर हमने हाथी छाप ब्रांड का कागज बनाने का फैसला किया. जानकारी इकट्ठा करने के दौरान हमें यह भी पता चला कि हम कोई नया काम करने नहीं जा रहे हैं, बल्कि विश्व के कई देशों में पहले से ही गोबर से कागज का निर्माण किया जा रहा है. कह सकते हैं कि हाथी के गोबर से कागज का निर्माण करने का आइडिया हमारा नहीं था, बल्कि हमने इस आइडिया पर प्रभावी ढंग से काम किया और इसे और आगे ले गये.
एंटरप्रेन्योर नहीं ग्रीन एंटरप्रेन्योर
एक एंटरप्रेन्योर विश्व में कहीं भी, कुछ भी काम कर सकता है, लेकिन जब एक एंटरप्रेन्योर को पर्यावरण हितैषी की तरह काम करना होता है, तो यह थोड़ा अलग हो जाता है. ऐसे में हमें सोचना पड़ता है कि हम अपने प्रोडक्ट के निर्माण में किन पदार्थो का प्रयोग करेंगे और वे पदार्थ कहां से उपलब्ध होंगे? मैं अपनी बात करूं, तो मुझे इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं सोचना पड़ा, क्योंकि मुझे पता था कि अपने प्रोडक्ट के निर्माण के लिए हाथी के गोबर का प्रयोग करना है.
रही बात गोबर की उपलब्धता की, तो जयपुर से संबंधित होने के नाते मुझे इस बारे में भी ज्यादा नहीं सोचना पड़ा, क्योंकि इस शहर में बहुत हाथी हैं. ग्रीन एंटरप्रेन्योर होने की बात करें, तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी एंटरप्रेन्योर पूरी तरह से पर्यावरण हितैषी हो सकता है. यदि ऐसा होता, तो हम अपने यहां अशुद्ध पानी की समस्या को दूर कर पाते, लेकिन इस दिशा में हम कोई भी प्रभावी कदम नहीं बढ़ा पा रहे हैं. हां, मगर हाथी छाप के प्रोडक्ट बनाने में हम इस बात का ख्याल जरूर रखते हैं कि इनके निर्माण में किसी प्रकार के रसायन का प्रयोग न हो.
लोगों को पसंद आते हैं प्रोडक्ट
शुरुआती दिनों में अपने प्रोडक्ट को पहचान दिलाने के लिए हमें थोड़ी मेहनत जरूर करनी पड़ी, लेकिन लोगों ने हमारे प्रोडक्ट को हाथों-हाथ लिया और जल्द ही हाथी छाप को ग्रीन एंटरप्राइज की पहचान मिल गयी. आज भी हर दिन नये-नये लोग हमारे प्रोडक्ट से परिचित हो रहे हैं. जब लोगों को पता चलता है कि हमारे प्रोडक्ट अपशिष्ट पदार्थ से बनें हैं, तो वे भी कहते हैं कि इस प्रकार के प्रोडक्ट्स को बढ़ावा मिलना चाहिए.
लुक पर ध्यान देते हैं लोग
हाथी के गोबर से कागज तैयार करने के बाद हमने उसे आकर्षक रूप देने का फैसला भी किया. दरअसल, अपने अनुभवों के आधार पर मैं यह समझा चुकी थी कि खाने-पीने के किसी पदार्थ के प्रयोग में तो लोग ग्रीन प्रोडक्ट्स का प्रयोग करना पसंद करते हैं, लेकिन स्टेशनरी के मामले में वे प्रोडक्ट के ग्रीन होने या न होने पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. स्टेशनरी में लोग फंकी दिखनेवाले प्रोडक्ट्स लेना पसंद करते हैं. इसीलिए हमने अपने प्रोडक्ट्स को भी फंकी लुक देना शुरू कर दिया.
ऐसे प्रोडक्ट्स का बाजार
भारतीय बाजार में ऐसे प्रोडक्ट्स अभी अपनी जगह नहीं बना पाये हैं. यहां ग्रीन प्रोडक्ट्स को किसी प्रकार का सर्टिफिकेशन नहीं दिया गया है. इसलिए कई बार ग्राहक ऐसे प्रोडक्ट्स को पहचान नहीं पाते, न ही इनकी उपयुक्तता को समझ पाते हैं. ऐसे में लोगों को इस प्रकार के प्रोडक्ट्स के प्रति जानकारी इकट्ठा करनी होगी. उन्हें यह भी समझना होगा कि किस प्रकार का ग्रीन प्रोडक्ट 50 प्रतिशत ग्रीन है और किस प्रकार का प्रोडक्ट 100 प्रतिशत ग्रीन है.
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