Wednesday, 29 January 2014

सफलता और समृद्धि दे पालन का उद्योग

 

सफलता और समृद्धि दे पालन का उद्योग

  • Oct 17 2013 12:26PM
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कहते हैं कि घर में मछली पालने से सुख और समृद्धि आती है, तो जरा सोचिए कि मछली से जुड़ा व्यवसाय आपको कितनी सफलता देगा! मछली पालन रोजगार का एक ऐसा ही माध्यम है, जो कम लागत के साथ बेहतरीन मुनाफा कमाने का जरिया बनता है.
मछली पालने का काम पहले सिर्फ मछुआरे करते थे और यह मुख्य रूप से उनकी आमदनी का जरिया हुआ करता था, लेकिन टेक्नोलॉजी के दौर ने इस काम को अन्य लोगों के लिए भी रोजगार का एक बेहतरीन विकल्प बना दिया है. आज यह काम एक सफल लघु उद्योग के रूप में अपनी पहचान बना चुका है. मछली पालन का व्यवसाय रोजगार के अवसर तो पैदा करता ही है, साथ ही खाद्य पूर्ति और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि आप एक सफल उद्योग को अपनाना चाहते हैं, तो मछली पालन आपके लिए बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है.
शैक्षिक योग्यता
इस उद्योग को रोजगार के रूप में अपनाने के लिए बेहतर होगा कि पहले आप मछली पालन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी हासिल कर लें. इसके लिए आप मछली पालन का सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स कर सकते हैं. सर्टिफिकेट कोर्स के लिए निश्चित शैक्षिक योग्यता और आयु सीमा निर्धारित नहीं है, लेकिन अभ्यर्थी को विज्ञान विषय से स्नातक होना चाहिए. इसका डिप्लोमा केवल एक वर्ष का होता है.
सबसे पहले तैयार करें तालाब
मछली पालन की शुरुआत करने के लिए सबसे पहले तालाब का निर्माण करना होता है. मछलियों को पालने के लिए जलीय पौधों से रहित दोमट मिट्टीवाले तालाब का चयन करना सबसे उपयुक्त होता है. तालाब ऐसा होना चाहिए, जिसमें कम-से-कम पांच से छह फुट तक पानी भरा रहे. यदि तालाब में जलीय खर-पतवार या पौधे हों, तो उन्हें उखाड़ देना चाहिए. ये जलीय पौधे तालाब की मिट्टी और पानी में उपलब्ध भोजन तथा पोषक तत्वों को कम कर देते हैं. यदि आप पहले से ही बने तालाब में मछलियों का पालन करना चाहते हैं, तो उस तालाब में नयी मछलियां डालने से पहले उसकी सफाई अवश्य करा लें. पानी में बारीक जाल डाल कर मांसाहारी मछलियों को निकाल दें. ये मछलियां पाली जानेवाली मछलियों को खा जाती हैं. तालाब को मछलियों के लिए उपयुक्त बनाने के साथ ही उसके पानी में खर-पतवार नाशक दवा 2-4 डी का इस्तेमाल करें या फिर चूने का छिड़काव कराएं. एक बात पर विशेष ध्यान रखें कि पानी का स्नेत तालाब के समीप ही हो, ताकि जरूरत पड़ने पर उसे भरा जा सके. यह भी ध्यान रखें कि मछली पालनेवाले तलाब में मेंढक और कंकड़ वगैरह न हों.


कैसी मछलियों को पालें
मछली पालन के लिए उन मछलियों का चयन करना चाहिए, जो छोटे-छोटे जलीय जीवाणु खाकर जीवित रहती हैं और कम समय में ही तेजी से बढ़ती हैं. मछलियों की ऐसी लगभग 30 प्रजातियां हैं, जो आर्थिक दृष्टि से इस उद्योग के लिए काफी उपयोगी हैं. शाकाहारी मछलियों में कतला, रोहू, मिरगल, कामन कार्प, सिल्वर कार्प, कालवासु, कतरोहू, बाटा और महाशीर को पालना बेहतर होता है, जबकि मांसाहारी मछलियों में पडिन, चीतल और संबला का अत्यधिक पालन किया जाता है.      
यदि आप एक ही तालाब में विभिन्न प्रकार की मछलियां पालना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप तालाब में विभिन्न सतहों पर रहनेवाली मछलियों का चयन करें. साथ ही यह ध्यान रखें कि वे सभी मछलियां शाकाहारी हों, ताकि वे दूसरी मछलियों का शिकार न करें. ऊपरी सतह पर रहनेवाली मछली कतला और सिल्वर कार्प हैं, जो एक साल में दो किलो तक वजनी हो जाती हैं. ये दोनों ही विदेशी नस्ल की मछलियां हैं. ग्रास कार्प और रोहू पानी के बीच की सतह के लिए पाली जा सकती हैं, जो एक साल में 800 ग्राम तक हो जाती हैं. ये जलीय वनस्पति खाने की शौकीन होती हैं. रोहू का वजन साल भर में दो किलो तक हो जाता है. वहीं मिरगल और कामन कार्प वे मछलियां हैं, जो पानी की निचली सतह पर रह कर अपना भोजन स्वयं प्राप्त करती हैं. तीनों मछलियों के बीज जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में तालाब में छोड़ दिये जायें, तो तालाब से प्रति हेक्टेयर लगभग तीन मीट्रिक टन या 3,000 किलोग्राम तक मछलियां पैदा की जा सकती हैं. फरवरी से जून तक मछलियां निकाल कर बेचने लायक हो जाती हैं. जुलाई से अक्तूबर तक बीज का उत्पादन करके उन्हें पालने योग्य बनाया जा सकता है

अपशिष्ट पदार्थ को दिया नया रूप

 

अपशिष्ट पदार्थ को दिया नया रूप
  • Nov 7 2013 12:20PM
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दिन-प्रतिदिन पर्यावरण को होनेवाले नुकसान के चलते, ऐसी हर चीज के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए जागरूकता फैलायी जा रही है, जिसका प्रयोग पर्यावरण के लिए नुकसानदेय साबित होता है. इकोफ्रेंडली लाइफस्टाइल को अपनाने में यकीन रखनेवाली महिमा मेहरा, एक ऐसी ही उद्यमी हैं, जिन्होंने हाथी छाप का निर्माण कर कागज बनाने का नया तरीका ढूंढ़ निकाला..
महिमा बीते लगभग एक दशक से कागज बनाने के उद्योग से जुड़ी हैं, लेकिन ये कागज पेड़ों को काट कर नहीं, बल्कि हाथी के गोबर से बनाया जाता है. आइए जानते हैं, नयी सोच के साथ अपनी अलग पहचान बनानेवाली महिमा के इस सफर के बारे में..
कैसे आया यह आइडिया
शुरू से ही मैं कागज की री-साइक्लिंग से जुड़े काम करती रही हूं. जब मुझे पता चला कि हाथी के गोबर से कागज का निर्माण किया जा सकता है, तो मैं बेहद उत्साहित हुई. मेरा उत्साह तब और भी बढ़ गया, जब मुझे यह पता चला कि इस कागज को री-साइकिल भी किया जा सकता है. इसके बाद मैंने अपनी टीम के साथ इस काम को समझने के लिए जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इस दौरान हमें पता चला कि हाथी का पाचन तंत्र रेशों को बहुत अच्छी तरह नहीं पचा पाता. इस तरह से उसकी लीद में कागज बनाने के लिए जरूरी पल्प तैयार करने की खासी गुंजाइश होती है. हाथी ऐसा जानवर है, जो अपने खाये हुए का 40 फीसदी हिस्सा ही पचा पाता है. उसी की लीद को री-साइकिल कर हमने हाथी छाप ब्रांड का कागज बनाने का फैसला किया. जानकारी इकट्ठा करने के दौरान हमें यह भी पता चला कि हम कोई नया काम करने नहीं जा रहे हैं, बल्कि विश्व के कई देशों में पहले से ही गोबर से कागज का निर्माण किया जा रहा है. कह सकते हैं कि हाथी के गोबर से कागज का निर्माण करने का आइडिया हमारा नहीं था, बल्कि हमने इस आइडिया पर प्रभावी ढंग से काम किया और इसे और आगे ले गये.
एंटरप्रेन्योर नहीं ग्रीन एंटरप्रेन्योर
एक एंटरप्रेन्योर विश्व में कहीं भी, कुछ भी काम कर सकता है, लेकिन जब एक एंटरप्रेन्योर को पर्यावरण हितैषी की तरह काम करना होता है, तो यह थोड़ा अलग हो जाता है. ऐसे में हमें सोचना पड़ता है कि हम अपने प्रोडक्ट के निर्माण में किन पदार्थो का प्रयोग करेंगे और वे पदार्थ कहां से उपलब्ध होंगे? मैं अपनी बात करूं, तो मुझे इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं सोचना पड़ा, क्योंकि मुझे पता था कि अपने प्रोडक्ट के निर्माण के लिए हाथी के गोबर का प्रयोग करना है.

रही बात गोबर की उपलब्धता की, तो जयपुर से संबंधित होने के नाते मुझे इस बारे में भी ज्यादा नहीं सोचना पड़ा, क्योंकि इस शहर में बहुत हाथी हैं. ग्रीन एंटरप्रेन्योर होने की बात करें, तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी एंटरप्रेन्योर पूरी तरह से पर्यावरण हितैषी हो सकता है. यदि ऐसा होता, तो हम अपने यहां अशुद्ध पानी की समस्या को दूर कर पाते, लेकिन इस दिशा में हम कोई भी प्रभावी कदम नहीं बढ़ा पा रहे हैं. हां, मगर हाथी छाप के प्रोडक्ट बनाने में हम इस बात का ख्याल जरूर रखते हैं कि इनके निर्माण में किसी प्रकार के रसायन का प्रयोग न हो.
लोगों को पसंद आते हैं प्रोडक्ट
शुरुआती दिनों में अपने प्रोडक्ट को पहचान दिलाने के लिए हमें थोड़ी मेहनत जरूर करनी पड़ी, लेकिन लोगों ने हमारे प्रोडक्ट को हाथों-हाथ लिया और जल्द ही हाथी छाप को ग्रीन एंटरप्राइज की पहचान मिल गयी. आज भी हर दिन नये-नये लोग हमारे प्रोडक्ट से परिचित हो रहे हैं. जब लोगों को पता चलता है कि हमारे प्रोडक्ट अपशिष्ट पदार्थ से बनें हैं, तो वे भी कहते हैं कि इस प्रकार के प्रोडक्ट्स को बढ़ावा मिलना चाहिए.
लुक पर ध्यान देते हैं लोग
हाथी के गोबर से कागज तैयार करने के बाद हमने उसे आकर्षक रूप देने का फैसला भी किया. दरअसल, अपने अनुभवों के आधार पर मैं यह समझा चुकी थी कि खाने-पीने के किसी पदार्थ के प्रयोग में तो लोग ग्रीन प्रोडक्ट्स का प्रयोग करना पसंद करते हैं, लेकिन स्टेशनरी के मामले में वे प्रोडक्ट के ग्रीन होने या न होने पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. स्टेशनरी में लोग फंकी दिखनेवाले प्रोडक्ट्स लेना पसंद करते हैं. इसीलिए हमने अपने प्रोडक्ट्स को भी फंकी लुक देना शुरू कर दिया.
ऐसे प्रोडक्ट्स का बाजार
भारतीय बाजार में ऐसे प्रोडक्ट्स अभी अपनी जगह नहीं बना पाये हैं. यहां ग्रीन प्रोडक्ट्स को किसी प्रकार का सर्टिफिकेशन नहीं दिया गया है. इसलिए कई बार ग्राहक ऐसे प्रोडक्ट्स को पहचान नहीं पाते, न ही इनकी उपयुक्तता को समझ पाते हैं. ऐसे में लोगों को इस प्रकार के प्रोडक्ट्स के प्रति जानकारी इकट्ठा करनी होगी. उन्हें यह भी समझना होगा कि किस प्रकार का ग्रीन प्रोडक्ट 50 प्रतिशत ग्रीन है और किस प्रकार का प्रोडक्ट 100 प्रतिशत ग्रीन है.

पॉकेटमनी से शुरू किया अलग पहचान बनाने का सफर

 

पॉकेटमनी से शुरू किया अलग पहचान बनाने का सफर
  • Nov 28 2013 11:59AM
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वर्ष 2006 में गुजरात विश्वविद्यालय से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीइ करने के बाद मैंने अहमदाबाद की एक कंपनी में दो वर्ष जॉब की. उस वक्त मैं महज 23 वर्ष की थी. मैंने इस क्षेत्र में अभी कदम ही रखा था. मेरे अंदर सफलता की ओर बढ़ने का जोश भरा हुआ था.

मैं इस क्षेत्र की किसी नामी कंपनी में उच्च पद पर काम करना चाहती थी, लेकिन मुङो कुछ ऐसे सीनियर्स का साथ मिला, जो मुङो मेरी योग्यता दर्शाने का मौका ही नहीं दे रहे थे. धीरे-धीरे मुझें यह भी महसूस होने लगा कि कॉपी / पेस्ट करने का जो काम मैं कर रही हूं, मैंने इसके लिए नौकरी नहीं ज्वॉइन की थी. इसीलिए मैंने जॉब के साथ फ्रीलांसिंग करना शुरू कर दिया. इसी बीच मेरे जेहन में अपनी कंपनी की शुरुआत करने का ख्याल उठने लगा और मैंने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया.
मुश्किल मगर रोचक शुरुआत
ठक्कर टेक्‍नोलॉजी की सफलता का सफर आसान नहीं था. मुझसे पहले मेरे परिवार के किसी भी सदस्य ने कभी भी व्यवसाय के क्षेत्र में कदम नहीं रखा था. इसलिए मैं और मेरे माता-पिता यह नहीं समझ पा रहे थे कि वेब डिजाइनिंग के इस व्यवसाय की शुरुआत हम कहां से करें. कंपनी की शुरुआत करने की कानूनी प्रक्रिया, कंपनी के काम को संभालने के लिए आवश्यक मैनपावर और आर्थिक खर्चो से जुड़ी छोटी-बड़ी जरूरतों को समझने के लिए मैंने और मेरे पिता जी ने बहुत मेहनत की. ये सब थोड़ा मुश्किल जरूर था, लेकिन मैं इसे बेहतरीन अनुभव मानती हूं, क्योंकि अपने व्यवसाय की शुरुआत करने के लिए सारी जानकारी मैंने खुद इकट्ठा की, इस दौरान मुङो काफी कुछ सीखने का मौका मिला.
मुफ्त में किया काम
किसी भी उद्यमी को व्यवसाय की शुरुआत करने में जिस परेशानी का सबसे पहले सामना करना पड़ता है, वह है पैसों के इंतजाम की समस्या. जाहिर है मुङो भी इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. आप यह भी कह सकते हैं कि मैंने किसी प्रकार की पूंजी के बिना अपनी पॉकेटमनी के पैसों से ही अपनी कंपनी ठक्कर टेक्‍नोलॉजी की शुरुआत की. दरअसल, ठक्कर टेक्‍नोलॉजी की शुरुआत करते वक्त मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि मेरा वह व्यवसाय चलेगा भी या नहीं. मैं पूरा ध्यान अपने व्यवसाय को स्थापित करने में लगाना चाहती थी. ऐसे में किसी भी तरह के नुकसान का सामना नहीं कर सकती थी, बल्कि मुङो ठक्कर टेक्‍नोलॉजी की शुरुआत के साथ ही प्रॉफिट पर जोर देना था, ताकि मैं अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा सकूं. दूसरी परेशानी यह भी थी कि मेरे परिवार में किसी का भी व्यवसाय से किसी प्रकार का जुड़ाव नहीं था. ऐसे में मुङो अपने क्लाइंट्स की लिस्ट खुद ही तैयार करनी थी. इसीलिए शुरुआती दौर में मैंने बेहद कम पैसों में काम किया. कभी-कभार तो मैंने खुद को साबित करने और क्लाइंट्स से अच्छे रिलेशन बनाने के लिए मुफ्त में भी काम किया.
कम उम्र खड़ी करती थी मुश्किलें
23 वर्ष की उम्र में व्यवसाय की शुरुआत करने पर मुङो क्लाइंट्स का विश्वास जीतने में भी थोड़ी परेशानी होती थी. लोगों को लगता था कि बिजनेस करने के लिए अभी मैं बहुत छोटी हूं. उन्हें इस बात की भी शंका होती थी कि अपनी कंपनी को मैं कैसे संभाल पाऊंगी. क्लाइंट्स भी कम उम्र के कारण मेरी कुशलता पर यकीन नहीं करते थे. हालांकि मेरा काम देखने के बाद उन्हें किसी तरह की शिकायत या संदेह नहीं रहता था.
रोचक रहा सफर
एक उद्यमी होना अपने आप में काफी रोचक होता है. आज अपने व्यवसाय को सफलता के मुकाम पर पहुंचाने के बाद मुङो उन लोगों से मिलना काफी रोचक लगता है, जिन्होंने इस सफर की शुरुआत में मेरी कुशलता को नकार दिया था. इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जो जॉब के दौरान मेरे टैलेंट पर सवाल उठाया करते थे. आज जब मैं उनसे एक कदम आगे के पायदान पर खड़ी हूं, ऐसे में उनका सामना करना मुङो बेहद रोचक लगता है. वे लोग आज भी किसी कंपनी में एक कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं, जबकि मैंने खुद को साबित कर अपनी पहचान बनाने में सफलता हासिल कर ली है.

युवा उद्यमियों के लिए संदेश

एक कुशल कैप्टन कभी भी डूबती नाव के साथ नहीं डूबता. हां, मगर घमंड लोगों को जरूर डुबो देता है. ऐसे में दूसरों के घमंड के आगे अपने विश्वास को कभी कमजोर न होने दें.
व्यवसाय शुरू करते वक्त फैंसी ऑफिस, तेज चलनेवाली कार जैसी दिखावे की चीजों पर ज्यादा पैसे न खर्च करें. कोई भी व्यवसाय दिखावे के दम पर आगे नहीं बढ़ता. आपका व्यवसाय आपके खून, पसीने की कमाई से फलता-फूलता है.

एक सबसे जरूरी बात जो व्यवसाय की शुरुआत करनेवाले हर उद्यमी को याद रखनी चाहिए कि आप रातोंरात करोड़पति नहीं बन जाते. सफलता हासिल करने के लिए आपको संयम के साथ अपने व्यवसाय और अपनी मेहनत पर विश्वास रखना चाहिए.

गांव में रहनेवालों के जीवन में परिवर्तन की बूंद

 

अवसर
गांव में रहनेवालों के जीवन में परिवर्तन की बूंद
  • Dec 5 2013 11:51AM
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अमेरिका से मासकॉम और फ्रांस से एमबीए करने के बाद रुस्तम सेनगुप्ता विदेश में अच्छी तनख्वाहवाली नौकरी कर रहे थे, मगर भारत के पिछड़े गांव और वहां रहनेवालों की समस्याओं ने रुस्तम को इस कदर अपनी ओर खींचा कि वे -‘बूंद’ नामक एक मॉडल के साथ अपने देश लौट आये. आज रुस्तम बूंद के माध्यम से विभिन्न गांवों में सौर प्रकाश, कीट नियंत्रण उपाय और पेयजल की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं. 
यूं तो मेरे माता-पिता बंगाल के हैं, लेकिन मेरा जन्म दिल्ली में हुआ और मैं यही पला-बढ़ा. प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल से प्राप्त हुई. इसके बाद मैंने इंजीनियरिंग की और फिर मासकॉम करने के लिए अमेरिका चला गया. मासकॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने अमेरिका में ही साढ़े चार वर्ष तक नौकरी की. इसके बाद मैं एमबीए करने के लिए फ्रांस चला गया और कोर्स पूरा करने के बाद कुछ समय फ्रांस में नौकरी करता रहा. इसके बाद मैंने भारत वापस लौटने का फैसला किया और यहां आकर ‘बूंद’ की नींव रखी.
बूंद की शुरुआत
ऐसा नहीं है कि बूंद की शुरुआत करने का ख्याल मुङो अचानक ही आया हो. जब मैं दिल्ली में पढ़ रहा था, तभी मुङो लगता था कि मैं कुछ ऐसा काम करूं, जिससे मेरे देश और यहां के लोगों को कुछ फायदा हो. मगर उस वक्त पढ़ाई का सिलसिला आगे बढ़ता गया और मैं दिल्ली से अमेरिका, अमेरिका से फ्रांस पहुंच गया. फ्रांस में एमबीए करने के दौरान मुङो एक कोर्स के सिलसिले में एक गांव में डेढ़ महीने रहना पड़ा. तभी मैंने गांव में रहनेवाले लोगों के जीवन में आनेवाली समस्याओं को करीब से जाना. मैंने फैसला किया कि मैं इन लोगों के जीवन में बिजली, पानी जैसी मूलभूत जरूरतों को दूर करने का प्रयास करूंगा. उसी वक्त मेरे इरादों में ‘बूंद’ ने जन्म ले लिया. इसके बाद मैं फ्रांस वापस लौट गया और एमबीए की पढ़ाई पूरी कर वहां जॉब करने लगा. जॉब के साथ-साथ ही मैंने अपने इरादे को हकीकत में बदलने के लिए रिसर्च वर्क करना शुरू कर दिया. कई तरह की रिसर्च करने के बाद जब मेरा बिजनेस प्लान पूरी तरह से तैयार हो गया, तब मैंने जॉब छोड़ी और भारत आकर बूंद को स्वरूप में ढालना शुरू कर दिया.

बूंद को व्यवसाय बनाना था, एनजीओ नहीं
बूंद की शुरुआत भले ही मैंने अकेले की, लेकिन तीन-चार महीनों में ही मुङो लोगों को इतना सहयोग मिलने लगा कि आगे का रास्ता अपने आप ही बनता चला गया. अगर लोगों का साथ नहीं मिला होता, तो शायद आज बूंद अपनी पहचान नहीं बना पाया होता. बूंद के सफर को आसान बनाने में आइआइएम सेंटर फॉर इनोवेशन इनक्यूवेशन एंटरप्रेन्योरशिप, अहमदाबाद के कुछ प्रोफेसर्स और वहां के लड़कों ने मेरी काफी मदद की. उन्होंने इस बात पर पूरा जोर दिया कि कैसे गांव में सोलर एनर्जी पहुंचाने के इस काम को व्यवसाय का रूप दिया जाये और यह काम एनजीओ में परिवर्तित न हो पाये. क्योंकि व्यवसाय के रूप में इस काम की शुरुआत करने का एक दूसरा मकसद गांव में रोशनी पहुंचाने के साथ वहां के युवाओं को रोजगार देना भी था. इस दौरान कई विशेषज्ञों ने हमारे लोगों को इस काम की ट्रेनिंग देने में मदद की.

उपलब्ध करायी लोन की सुविधा
गांव में रहनेवाले अधिकतर लोगों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वे हमारे प्रोडक्ट्स को पूरे पैसे देकर खरीद सकें. इसके लिए हमने गांववालों को छोटे-छोटे लोन दिलाने की सुविधा भी उपलब्ध करायी, ताकि वे हर महीने छोटी-छोटी किश्त चुका कर इन प्रोडक्ट्स को खरीद सकें और रोजमर्रा के जीवन में बिजली, पानी की समस्या से छुटकारा पा सकें. यदि कोई अपने घर में दो बल्ब, एक पंखे की व्यवस्था के लिए 10,000 रुपये की लागतवाला सोलर यूनिट लगवाना चाहता है, तो वह लोन के माध्यम से एक वर्ष तक प्रतिमाह 120 रुपये की किश्त देकर अपने घर में रोशनी की व्यवस्था कर सकता है.

रोजगार देने पर पूरा जोर
सोलर लैंप या फिर सोलर एनर्जी से चलनेवाले अन्य उपकरणों को बनाने, उनकी सर्विसिंग करने के लिए हमें कई लोगों की जरूरत पड़ती है. ऐसे में हमारा इस बात पर पूरा जोर होता है कि सुविधाओं के साथ हम गांव के लोगों को अपने काम से जोड़ कर उन्हें रोजगार भी दे सकें. उत्तर प्रदेश व राजस्थान के गांवों में हमारे जितने भी ऑफिस हैं, हमने वहां एंप्लॉई के रूप में वहीं के लोगों को रखा है. हमारी अपनी टीम में इस वक्त 22 लोग हैं. 50 से 60 लोग पार्टटाइम कमीशन पर काम करते हैं. हम गांवों में 7,000 से भी ज्यादा सिस्टम लगा चुके हैं. कई सोलर लाइटें लगायी हैं. इसके अलावा हम उन क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां लोगों को मदद की जरूरत होती है. जैसे 2010 में जब लद्दाख में बाढ़ आयी थी, तब हमारी पूरी टीम ने वहां के नौ गांवों में बिजली और पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध करायी थी. हाल में उत्तराखंड में हुई तबाही के बाद इस वक्त हमारी टीम वहां के गांवों में सुधार लाने का प्रयास कर रही है.
एक नहीं, सामने थी तीन बड़ी चुनौतियां
बूंद को पहचान देने में मुङो एक नहीं, बल्कि तीन बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इनमें सबसे बड़ी चुनौती थी फाइनेंस की. मैंने एक ऐसे क्षेत्र में काम करने का फैसला किया था, जहां सरकार भी कोई खास सुधार नहीं कर पा रही थी. ऐसे में मुङो व्यवसाय को आगे बढ़ाने के साथ अन्य कई प्रकार के खर्चो का सामना करना पड़ता था. जैसे गांव-गांव जाने के लिए मुङो काफी पैसे खर्च करने पड़ते थे. खाने-पीने की व्यवस्था करनी पड़ती थी. यहां तक कि रहने के लिए जगह न मिलने पर टेंट लगा कर रहने के लिए भी तैयार रहना पड़ता था. मेरे लिए दूसरी चुनौती थी बूंद को आगे बढ़ाने में मेरा सहयोग करनेवाले लोगों को अपने साथ जोड़ने की, क्योंकि इंजीनियरिंग करने के बाद अधिकतर युवा दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में काम करने की ख्वाहिश रखते हैं. कोई भी छोटे-छोटे गांव में जाकर कम वेतन में काम नहीं करना चाहता. मगर इस मामले में मेरी किस्मत अच्छी रही कि शुरुआत से ही मुङो अच्छे लोगों का साथ मिला. तीसरी चुनौती, जिसका मुङो सबसे ज्यादा सामना करना पड़ा, वह थी लोगों की सोच में परिवर्तन लाना. दरअसल, ऐसे कई ऑर्गनाइजेशन और सरकारी संगठन हैं, जो सुधार के नाम पर गांवों में कुछ लैंप व जरूरत की अन्य चीजें बांट देते हैं. कुछ दिनों के इस्तेमाल के बाद जब चीजें बिगड़ जाती हैं, तो इन्हें सुधारने के लिए कोई नहीं आता. जब मैं गांव में अपने सोलर लैंप व यूनिट लेकर गया, तो लोगों को लगा कि मैं भी बाकियों की तरह उन्हें बेवकूफ बना कर चला जाऊंगा. इस मानसिकता को बदलना और उनका विश्वास जीतना मेरे लिए काफी मुश्किल रहा. अपने प्रोडक्ट्स के साथ समय-समय पर उनकी सर्विसिंग की सुविधा देकर हमने लोगों को यह भरोसा दिलाया कि हम उन्हें कभी धोखा नहीं देंगे. वक्त के साथ हम पर लोगों का भरोसा गहरा होता चला गया.

खुशबू से महकता रोजगार

 



खुशबू से महकता रोजगार 
  • Dec 12 2013 11:24AM
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भारत में अगरबत्ती की खुशबू के साथ भगवान की पूजा-अर्चना करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. लोग अपने घर को चंदन, केवड़े और गुलाब की खुशबू से महकाने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं. सदियों से चले आ रहे अगरबत्ती के प्रयोग ने  इसके निर्माण को एक बेहतरीन स्वरोजगार में परिवर्तित कर दिया है..
अगरबत्ती निर्माण का कारोबार एक बेहतरीन स्वरोजगार के रूप में उभर रहा है. खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों की घरेलू महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस व्यवसाय से जुड़ना पसंद कर रही हैं. कम लागत के साथ शुरू किये जानेवाले इस व्यवसाय को अपनी आमदनी का जरिया बना कर आप भी रोजगार की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.
ले सकते हैं प्रशिक्षण
अगरबत्ती निर्माण के व्यवसाय की शुरुआत करने के लिए किसी डिग्री या डिप्लोमा की आवश्यकता नहीं पड़ती. इसके लिए व्यावहारिक ज्ञान और बाजार की जरूरतों को समझने की योग्यता ही काफी होती है. हां, मगर पढ़े-लिखे होने पर व्यापार को आपकी शैक्षिक योग्यता का लाभ जरूर मिलता है और आपके पास तरक्की के ज्यादा अवसर होते हैं. इस उद्योग की बारीकियों को समझने के लिए आप किसी संस्थान से प्रशिक्षण भी ले सकते हैं. आज खादी ग्रामोद्योग आयोग, गांधी दर्शन राजघाट जैसे कई सरकारी और निजी संस्थान अगरबत्ती निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हैं. यदि आप खादी ग्रामोद्योग से प्रशिक्षण लेते हैं, तो काम की शुरुआत करने के लिए आपको संस्थान से काफी सुविधाएं भी मिल जाती हैं. अगर आपके पास अगरबत्ती का काम ज्यादा मात्र में है, तो संस्था आपका माल भी खरीद सकती है. वहीं संस्था अगरबत्ती निर्माण करने के लिए आपको वाजिब दामों में रॉ-मैटेरियल भी उपलब्ध करा सकती है. भारत सरकार ने व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई अहम कदम उठाये हैं. मसलन योग्यता और अनुभव के आधार पर कई बैंक महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहे हैं.
आवश्यक सामग्री व निर्माण प्रक्रिया
अगरबत्ती निर्माण के लिए आपको कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है. कच्चे माल में लकड़ी, सफेद चंदन, लकड़ी का कोयला (चारकोल), राल, गूगल, सुगंधित तेल, सेंट, स्ट्रीक, कच्चा धागा, मोम आदि शामिल होता है. इसके अलावा परात, टब और लकड़ी की चौकीनुमा मेज की भी जरूरत पड़ती है. ये सभी सामग्री आपको किसी भी शहर या गांव में आसानी से मिल सकती है. वहीं कच्चे माल व अगरबत्ती निर्माण की आवश्यक सामग्री को खरीदने के लिए आपको बड़ी राशि खर्च करने की जरूरत भी नहीं पड़ती. 10 से 15 हजार रुपये की लागत के साथ आप आसानी से इस काम की शुरुआत कर सकते हैं. अगरबत्ती निर्माण की प्रक्रिया काफी सरल है. अगरबत्ती बनाने के लिए सबसे पहले सफेद चंदन और लकड़ी के कोयले को अच्छी तरह पीस लिया जाता है. इसके बाद गूगल को पानी में मिला कर उसकी लेई बना ली जाती है. इसमें पीसा हुआ सफेद चंदन, राल और लकड़ी का कोयला (चारकोल) मिला दिया जाता है. इस प्रकार यह मसाला तैयार हो जाता है. इस गूंथे हुए मसाले को बांस की सींकों पर लगाया जाता है.
ले सकते हैं घरवालों की मदद
आप अगरबत्ती का कारोबार अपने घर के सदस्यों के साथ मिल कर शुरू कर सकते हैं. अगर एक व्यक्ति के पास इसकी जनकारी है, तो वह दूसरों को काम करने का तरीका बता कर काम को आगे बढ़ा सकता है. अगर आपको लगता है कि काम बड़े स्तर पर शुरू करना है, तो आप रोजगार की तलाश करनेवाले अन्य लोगों को भी इस काम से जोड़ सकते हैं. ऐसा करने से आप तो अच्छा मुनाफा कमायेंगे ही, दूसरों को रोजगार भी दे सकेंगे.
एक कमरे में हो सकती है शुरुआत
इस काम की शुरुआत करने के लिए बड़े कारखाने या बड़ी जगह की जरूरत नहीं पड़ती. आप एक या दो कमरे में आसानी से इस व्यवसाय की शुरुआत कर सकते हैं. यह पूरी तरह से प्रदूषण रहित लघु कुटीर व्यवसाय है. हां, मगर अगरबत्ती निर्माण के लिए खुली जगह का चयन करने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसी जगह में अगरबत्ती की खुशबू उड़ जाती है.

छोटी लागत में पाएं बड़ा मुनाफा

 


यदि आपके हाथ के बने चटपटे स्नैक्स लोगों को बेहद पसंद आते हैं, तो इस हुनर को आप एक मुनाफेवाले  व्यवसाय में बदल सकते हैं. इस घरेलू व्यवसाय की खास बात यह है कि इसे शुरू करने में आपको खर्च की चिंता नहीं करनी पड़ती. बहुत ही कम खर्च में अपनी रसोई में ही इसे शुरू कर सकते हैं.
कुछ लोगों को स्वादिष्ट स्नैक्स बनाने और लोगों को खिलाने का शौक होता है. अगर आप भी ऐसा शौक रखते हैं तो आप इसे व्यवसाय में परिवर्तित कर अपने हाथों के हुनर के लिए न सिर्फ लोगों की तारीफें बटोरेंगे, बल्कि मुनाफा भी कमायेंगे. 
लागत की चिंता नहीं
किसी भी व्यवसाय की शुरुआत करने के लिए लोगों को लागत की चिंता सबसे ज्यादा परेशान करती है, लेकिन स्नैक्स बनाने का काम आपको इस चिंता से दूर रखता है. इस काम की शुरुआत के लिए कोई बड़ी राशि खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि महज 200 से 500 रुपये की लागत से आप इसकी शुरुआत कर सकते हैं. यह लागत नमकीन, मठरी, पापड़ी व अन्य स्नैक्स बनाने के लिए प्रयोग की जानेवाली सामग्री पर खर्च होती है.
एक सहायक ही है काफी 
स्नैक्स के व्यवसाय की शुरुआत करने के लिए आपको ज्यादा लोगों या बड़ी जगह की जरूरत भी नहीं पड़ती. आप अपनी रसोई से ही प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत कर सकते हैं. आप चाहें तो एक सहायक रख सकते हैं, जो प्रोडक्ट तैयार करने में आपकी मदद करे. रही मार्केट में प्रोडक्ट के सेल्स की बात तो इस काम को आप खुद ही  संभालें, तो ज्यादा अच्छा होगा. हां, आगे जाकर बाजार में प्रोडक्ट की मांग बढ़ने पर आप जरूरत के हिसाब से अन्य सहायक और प्रोडक्ट तैयार करने के लिए जगह की व्यवस्था कर सकते हैं.
दुकानों  से करें पहल
शुरुआत में अलग-अलग प्रकार की स्नैक्स के छोटे-छोटे पैक तैयार करना ही ठीक रहता है. पैक तैयार करने के बाद जरूरत होती है इसकी बिक्री का विकल्प ढूंढ़ने की. इसके लिए आस-पास के दुकानदारों से संपर्क कर उन्हें प्रोडक्ट बेचना सबसे अच्छा विकल्प है. हो सकता है कि शुरू में दुकानदार तुरंत पैसे देकर आपके प्रोडक्ट न खरीदें, लेकिन ग्राहकों में प्रोडक्ट की बढ़ती मांग को देखते हुए वे आपसे संपर्क करने लगेंगे और नियमित रूप से आपके प्रोडक्ट खरीदना शुरू कर देंगे. यदि आपको बजट की कोई समस्या नहीं है, तो आप आस-पास के मॉल्स में अपने प्रोडक्ट के स्टॉल भी लगा सकते हैं. इससे न सिर्फ बिक्री बढ़ेगी, बल्कि लोगों में प्रोडक्ट के प्रति जागरुकता भी फैलेगी.
दुकानदारों को जोड़ने में है ज्यादा फायदा
यूं तो आपने प्रोडक्ट की सेल्स के लिए आप खुद की दुकान भी खोल सकते हैं, लेकिन बिक्री और मुनाफे की बात करें तो दुकानदारों के माध्यम से प्रोडक्ट बेचना ज्यादा फायदेमंद रहता है. इससे आप दुकान पर होनेवाले व्यय से भी बच जाते हैं और आपके प्रोडक्ट की सेल भी ज्यादा होती है. खुद की दुकान में आप कितने प्रोडक्ट बेच पायेंगे, यह निश्चित नहीं, जबकि दुकानदारों से अच्छे संबंध स्थापित होने के बाद वे आपके नियमित ग्राहक बन जाते हैं. आप बिजनेस की ग्रोथ के साथ इन ग्राहकों की संख्या भी बढ़ा  सकते हैं.

avsar



अवसर
नौकरी छोड़ कर की एक नयी शुरुआत
  • Sep 19 2013 6:42AM
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‘बैंड बाजा बारात’ की श्रुति कक्कड़ की तरह दिल्ली की स्मिता गुप्ता ने भी छोटी-सी शुरुआत के साथ वेडिंग प्लानिंग के व्यवसाय में अपनी बड़ी पहचान बनायी है. छोटे बजट की बर्थ-डे पार्टी के आयोजन से शुरुआत कर वे आज दिल्ली से चंडीगढ़ तक एक करोड़ से ज्यादा बजटवाली शादियां ऑर्गनाइज करा रही हैं.
शा दी के बाद कौशांबी में रहनेवाली स्मिता  गुप्ता नौकरी और घरदोनों जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थींमगर वक्त के साथ उन्हेंपरिवार को पर्याप्त वक्त  दे पाने की कमी महसूस होने लगीइस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने आठ साल के कैरियरको छोड़ कुछ ऐसा करने का फैसला कियाजिससे उन्हें सफलता के साथ  परिवार के साथ रहने का मौका भी मिल सकेइस फैसलेने उन्हें वेडिंग प्लानिंग के व्यवसाय की शुरुआत करने का रास्ता दिखायाजिस पर चल कर आज स्मिता अपनी एक अलग पहचानबना चुकी हैंएक मुलाकात वेडिंग और कॉरपोरेट इवेंट प्लानर स्मिता गुप्ता से..

एक नये कैरियर की ओर कदम

एचआर में एमबीए करने के बाद मैंने आठ साल तक नौकरी की. इस दौरान मैंने कई बार ऑफिस के इवेंट्स आयोजित कराये. मुङो इसमें काफी मजा भी आता था. शादी के बाद भी मैं नौकरी के दौरान शौकिया इवेंट आयोजित करने का काम करती रही. मगर जब मेरा बेटा हुआ, तो मुङो लगने लगा कि अब मुङो अपने परिवार और बेटे को वक्त देना चाहिए. इसके बाद ही मैंने जॉब छोड़ कर कुछ नया करने के बारे में सोचना शुरू किया. मैं पहले ही ऑफिस के कार्यक्रम और इवेंट्स आयोजित कराती थी, तो मुङो लगा कि क्यों न मैं इसी दिशा में अपने नये कैरियर की शुरुआत करूं.
बर्थ-डे पार्टी से की शुरुआत
भले ही पहले मैं ऑफिस के कई इवेंट आयोजित कर चुकी थी, लेकिन मेरे पास इस काम से संबंधित कोई डिग्री नहीं थी. न ही प्रोफेशनल लेवल पर इस काम को करने का अनुभव था. ऐसे में मैंने छोटी-छोटी बर्थ-डे पार्टी आयोजित करने से इस काम की शुरुआत की. शुरुआत में मैंने इंटरनेट की मदद से आस-पास के वेन्यू का पता लगाया. कुछ ऐसे लोगों की तलाश की, जो बर्थ-डे पार्टी आयोजित करने के काम में मेरी मदद करें. इसी तरह से मैंने डेकोरेटर, गेम कोऑर्डिनेटर और मैजीशियन की एक छोटी-सी टीम तैयार की. पहली बर्थ-डे पार्टी बहुत छोटे बजट की मिली. मात्र 15 हजार के बजट में मुङो खाने से लेकर बच्चों के इंटरटेनमेंट तक की सारी व्यवस्था करनी थी. मगर मैंने उस बजट में भी अपनी पूरी क्रिएटिविटी दिखायी. खाने-पीने के साथ मैंने बच्चों का मनोरंजन करने के लिए एक जादूगर बुलाया. क्लाइंट को मेरा काम पसंद आया. पहली पार्टी से मिली सराहना ने हौसले को मजबूती दी और फिर यह सिलसिला चल निकला.
वक्त आ गया कुछ बड़ा करने का
25 से 30 बर्थ-डे पार्टी आयोजित करने के एक साल के अनुभव के बाद मुङो लगा कि अब मैं किसी बड़े इवेंट को ऑर्गनाइज करने की जिम्मेवारी ले सकती हूं. फिर मैंने वेडिंग ऑर्गनाइज करने का फैसला कर लिया. इसके लिए जल्द ही ऑर्डर भी मिलने लगे. हालांकि इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेना और उसे पूरा करना आसान नहीं होता. इसीलिए मैंने अपने मुनाफे को न देखते हुए सिर्फ इस बात पर ध्यान दिया कि लोगों को मेरा काम पसंद आये. मैं सजावट और खाने की जिम्मेदारी अनुभवी डेकोरेटर और कैटरर को ही देती थी. शुरुआत में 4 से 5 लाख के बजट वाली शादी ही मिली. वक्त के साथ महंगे बजट वाली शादियों के ऑर्डर भी मिलने लगे.
चौंक जाते हैं लोग
चार वर्षो में 15 हजार के बजट वाली बर्थ-डे पार्टी ऑर्गनाइज करने से शुरू हुआ यह व्यवसाय आज करोड़ों के बजट वाली शादियां आयोजित करने तक पहुंच चुका है. ऐसे में जब मैं किसी को बताती हूं कि मैंने इस व्यवसाय की शुरुआत शून्य लागत से की थी, तो वे चौंक जाते हैं. लेकिन यह सच है कि मैंने इस व्यवसाय की शुरुआत करने के लिए  किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं ली. मैं हमेशा एडवांस लेकर काम करती थी. उसी पैसों से पार्टी की पूरी व्यवस्था करती थी. मुङो जो कुछ भी होता था, उसे अपने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए बचा लेती थी. इसी तरह मेरा व्यवसाय आगे बढ़ा और एक दिन मैंने घर पर ही अपना एक ऑफिस सेटअप तैयार कर लिया.